असल इश्क तो बचपन से किया है। 


मेने बचपन की यादों को संभालकर खुद पर एहसान किया हे। 
जवानी ने तो केवल हमें बदमान किया हे। 
युँही जवानी को खुद पे गुरूर हे। 
कोई बताए इसे हमने असल इश्क तो बचपन से किया हे। 


मेने बचपन को ही जिंदगी बताया है। 


बचपन के किस्सों को मेने कहानी में पिरोया है। 
उनकी यादों को लिख मेने खुद को फिर से बनाया है। 
शहर हे चौराहे ने हमे गुमनाम बताया है। 
गाँव की गलियों ने तो हजारों गलतियों के बाद भी अपनाया है। 
 मेने जब भी खुद को अकेला पाया है।     
मेने बचपन को ही जिंदगी बताया है। 


मेरे बचपन का गाँव। 


मेरे बचपन के गांव ने खुद को शहर कर दिया हे। 
मेरे गांव ने भी अब खुद को जवान कर दिया हे। 

जहाँ बचपन में गांव की गलियों को शोर शराबे से इश्क़ था। 
अब उस ने भी खुद को खामोश कर दिया हे। 
मेरे बचपन के गांव ने खुद को शहर कर दिया हे। 
मेरे गांव ने भी अब खुद को जवान कर दिया हे। 

जहाँ गलियों की मिट्टी घरों तक जाती थी। 
वहाँ अब नगें पांवो ने भी मुँह मोड़ दिया हे। 
वक्त के साथ मिट्टी ने भी खुद को पका कर दिया हे। 
मेरे बचपन के गांव ने खुद को शहर कर दिया हे। 
मेरे गांव ने भी अब खुद को जवान कर दिया हे। 

जहाँ पेड़ की डालिया हमे देख खुद को ऊपर उठाती थी। 
उसने भी इस अकेलेपन हे साथ खुद को झुखा  दिया हे ,
अब लौट के कहाँ आयगा वो वक्त। 
इसी टुटती उमीदों के साथ मेरे बचपन के गांव ने खुद को शहर कर दिया हे। 
मेरे गांव ने भी अब खुद को जवान कर दिया हे।