तेरी अदालत में हम तेरे मुजरिम थे।
गवाहों से किया सुन रही थी।
आँखे मिला के फैसला करती।
जुखा के सर कौनसा रिहा कर रही थी।
लिख देती सजाए मौत।
कोनसी तुम्हारे हाथो में नदी बेह रही थी।
💔💔